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माकपा का आरोप, हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के लिए फर्जी प्रस्ताव पर स्वीकृति

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रायपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में दो कोयला खनन परियोजनाओं को स्वीकृति देने के छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले का कड़ा विरोध किया है। सरकार के इस कदम को आदिवासीविरोधी और कॉरपोरेट हितों से संचालित बताया है।

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पार्टी ने कहा है कि फर्जी ग्राम सभा के प्रस्ताव के आधार पर दी गई यह स्वीकृति आदिवासी अधिकारों का हनन और इस समुदाय के लिए बनाए गए तमाम कानूनों का खुला उल्लंघन है और इस कारण गैर-कानूनी और असंवैधानिक है।

आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि कोयला खनन की अनुमति के पूर्व आदिवासी वनाधिकार कानून के तहत इस क्षेत्र में पीढ़ियों से बसे आदिवासियों के व्यक्तिगत और सामुदायिक वनाधिकारों की स्थापना की जानी चाहिए थी और पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं की खनन के लिए स्वीकृति ली जानी चाहिये थी।

लेकिन कांग्रेस सरकार ने अपने कॉरपोरेट आकाओं की सेवा के लिए इन कानूनों के पालन की कोई जरूरत नहीं समझी, जबकि इस क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने कोयला खनन परियोजना का सर्वसम्मति से विरोध किया है और पिछले तीन सालों से वे इसके खिलाफ आंदोलनरत है।

उन्होंने कहा कि भारतीय वन्य जीव संस्थान सहित पर्यावरण के लिए काम कर रही कई संस्थाओं ने इस क्षेत्र में खनन से होने वाले पर्यावरणीय दुष्प्रभावों और आदिवासियों के जबरन विस्थापन से पैदा होने वाले मानवीय संकट के खिलाफ सरकार को चेतावनी दी है।

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार ही इस क्षेत्र में खनन के लिए 2 लाख पेड़ काटे जाएंगे और 3000 से ज्यादा आदिवासी विस्थापन से प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से प्रभावित होंगे, जिनका जीवन-अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। ऐसे में आदिवासी हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होने के कांग्रेस सरकार के दावे का खोखलापन स्पष्ट नजर आता है।

माकपा नेता ने आरोप लगाया है कि कॉर्पोरेटपरस्त सरकार का प्रशासन हसदेव क्षेत्र में जारी आदिवासियों के लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने पर आमादा है। एक ओर आदिवासी महिलाएं ‘चिपको आंदोलन’ चला रही है, दूसरी ओर भारी बलों की उपस्थिति में रात में पेड़ों की कटाई की जा रही है। कॉरपोरेटों के पालतू गुंडों द्वारा आदिवासियों को आंदोलन वापस लेने के लिए डराया-धमकाया जा रहा है, अन्यथा अंजाम भुगतने की चेतावनी दी जा रही है।

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कोयला खनन के लिए दी गई स्वीकृति को वापस लेने और आदिवासी अधिकारों की स्थापना किये जाने की मांग करते हुए उन्होंने कहा है कि जल-जंगल-जमीन-खनिज और प्राकृतिक संसाधनों तथा अपने जीवन-अस्तित्व की रक्षा के लिए हसदेव क्षेत्र के आदिवासियों द्वारा चलाये जा रहे शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक आंदोलन का माकपा समर्थन करती है और अपनी एकजुटता का इजहार करती है।