कवर्धा। संत कबीर दास (SANT KABIR DAS) मानव धर्म के सच्चे उपासक थे। आज उनकी जयंती हैं, उनका प्राकट्य ज्येष्ठ पूर्णिमा को माना जाता है। पूरे भारत में उनके अनुयायी हैं, इससे कवर्धा भी अछूता नहीं है। साल 1806 से 1903 यानी 97 साल तक कवर्धा कबीर पंथ का गुरु गद्दी पीठ बना रहा। जिन 4 पंथ श्री ने यहां गुरु गद्दी संभाली, उनकी समाधि आज भी कवर्धा में स्थित है।
वर्ष 1896 में पंथ श्री सुरति सनेही नाम साहब की मृत्यु के बाद 8वीं पंथ श्री हकनाम साहब ने गुरु गद्दी संभाली। कबीर पंथ का प्रचार करते हुए वे कवर्धा पहुंचे थे। तब तात्कालीन कवर्धा स्टेट के राजा उजियार सिंह थे। उन्हें जब पंथी श्री के आगमन का पता चला, तो वे दर्शन को पहुंचे।
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उनके अनुरोध पर ही पंथी श्री हकनाम साहब ने कवर्धा में गुरु गद्दी की स्थापना की थी। इनके गुरु वाई बल में कवर्धा कबीर पंथ का तीर्थ बन गया। कबीर (SANT KABIR DAS) पंथी साहित्य की रचना भी इनके कार्यकाल में हुई। बताया गया कि 11वें पंथ के बाद 12वीं पंथ श्री अगर नाम साहब ने कवर्धा को छोड़ दिया और दामाखेड़ा में गुरुगद्दी की स्थापना की।
1833 को कवर्धा के गुरु गद्दी पर बैठे थे पाक नाम साहब
वर्ष 1833 में पंथ श्री हकनाम साहब का देहांत हुआ। यहां स्थित कबीर (SANT KABIR DAS) आश्रम में ही उनकी समाधि बनी। उसके बाद उनके पुत्र पाक नाम साहब गुरु गद्दी पर बैठे। इनके कार्यकाल में ज्ञान सागर सुकष्त ध्यान, विवेक सागर, अम्बू सागर जैसे ग्रंथों की रचना हुई। वर्ष 1855 में पाक नाम साहब का स्वर्गवास हुआ। इनकी समाधि हकनाम साहब की समाधि के ठीक बगल में बनी है।
अफ्रीका व मॉरीशस तक किया कबीर पंथ का प्रसार
10वीं पंथ श्री के रूप में प्रगटनाम साहब ने वर्ष 1855 में कवर्धा की गुरु गद्दी संभाली। इनके गद्दी काल में भारत के अलावा विदेशों जैसे अफ्रीका, माॅरीशस, ट्रिनीडाड में भी कबीर पंथ का प्रसार हुआ। कई मठ स्थापित हुए। वर्ष 1882 में उनका देहांत होने पर कवर्धा में ही इनकी समाधि बनाई गई। 11वें पंथ श्री धीरज नाम साहब गद्दीशीन होने से पहले ही चल बसे थे।